खबर पर नजरिया/views on news
आज साल 2019 शुरू हुआ है। जाहिर है उत्साह है, कुछ नया लिखने का, कुछ नया काम करने का, कुछ नया देखने का ,कुछ कर दिखाने का भी, लीक से हटकर कुछ करने का , नाम और दाम कमाने का, कुछ ऐसा पाने का कि लगे की सफल हूं। अख़बार सामने है। क्यों ना खबरों के बारे में सोचा जाए। मेरे आलस्य की वजह भी यही है कि मैं सोचता हूं ,सोच को कार्य रूप में नहीं ढाल पाता। ऐसे हालात में अब दो ही बातें हो सकती हैं कि या तो सोचना छोड़ दें या फिर सोचना ही काम बन जाए। इसलिए अब सुबह ही सोच रहा हूं कि क्यों ना खबरों पर ही कुछ सोचा जाए और वह सोच दूसरों को भी पता लगे। तो साल के पहले दिन के अखबार में पहले पन्ने पर नजर दौड़ा रहा हूं और सोच रहा हूं हर एक पक्ष । उनमें से कुछ चुनिंदा के बारे में आपको भी बताऊं!
सज्जन गए जेल/ Sajjan in jail
साल 1984 के कथित सिख विरोधी दंगों में एक सज्जन कुमार आज फाइनली मंडोली जेल चले गए। दिल्ली हाई कोर्ट की ओर से उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली है। वे 73 साल के हैं। बहुत लंबे समय मुकदमा चला । अब 34 साल बाद फैसला आया किसी समुदाय के विरोध में दंगे हुए थे जिसमें सूत्रधार के तौर पर सज्जन आरोपी था।
न्याय विलंब/ justice delayed
विडंबना है हमारे देश की कानूनी व्यवस्था की। एक आम हत्यारे को पांच 7 साल में सजा मिल जाती है लेकिन एक समुदाय के खिलाफ सामूहिक नरसंहार जैसे अपराध के मामले में आधी उम्र बीत जाती है न्याय मिलने में। इससे एक बड़ा वर्ग न्याय के शासन के प्रति आशंकित हो जाता है । न्याय तो जल्दी ही मिलना चाहिए ।
कांग्रेस परआरोप/accusation
सज्जन अपने समय के बड़े कांग्रेसी नेता थे । तो इस बीच में कांग्रेस पर आरोप लगते रहे अपने सज्जन को सजा से बचाने के। तथ्य छुपाने के। जांच प्रभावित करने के । लेकिन कांग्रेस ने हमेशा उस पर लगे इन आरोपों को गलत बताया .और भी कोई दो पूर्व एमएलए इसी आरोप में उनके साथ जेल गए हैं ।
जेल में सुरक्षा/security in jail
इस खबर से अलग भी सुना है कि उन्हें सिख कैदियों से अलग सेल में रखा जाएगा जेल के भीतर।
सिखों में खुशी/welcome!
सिख समुदाय में खुशी है। मना भी रहे हैं , गुरुद्वारों में, घरों में, सोशल मीडिया पर। वैसे उन्हें इस समर्पण के बाद अपने वकील के जरिए आगे अपील आदि करने का हक है ,जाहिर है करेंगे भी
इसलिए बनी हेडलाइन/got highlighted
यह खबर आज के टाइम्स ऑफ इंडिया की हेड लाइन इसलिए बनी कि एक तो राष्ट्रीय स्तर की खबर थी और दूसरे उत्तर भारत में बड़ी संख्या सिख पाठकों की है।
उनके गुनहगार क्यों बचे/why they spared
वहीं पंजाब में आतंकवाद के दिनों की पृष्ठभूमि में कुछ बहुसंख्यक वर्ग के लोगों में यह प्रश्न भी विचार विनिमय का विषय है कि जो हजारों हिंदू, कुछ परिवार भी, पंजाब में आतंकवाद के दौरान मौत के घाट उतारे गए । उनके संबंधियों की अपनों की आवाज उठाने की हिम्मत क्यों नहीं हुई। देश में उन पर अत्याचार की चर्चा क्यों नहीं हुई । उन्हें मजबूरी में चुप क्यों रहना पड़ा । उनके बारे में कोई एक शब्द क्यों नहीं बोला। कश्मीर के हिंदुओं पर दशकों तक चले अत्याचार और उन्हें पलायन को मजबूर करने वाले नरसंहार ,जाति संहार पर कोई अल्पसंख्यक क्यों कभी एक शब्द नहीं बोला।